Vishwaguruji
""मेरे बच्चों, तुम सनातन काल से मेरी सन्तानें हो । मेरे असली दूत हो । संसार के जितने भी पन्थ और धर्म हैं वो एक ही महाज्योति की ओर ले जाते हैं । हर मनुष्य को भगवान के अस्तित्व को समझना चाहिये और उससे एकाकार होने का प्रयत्न करना चाहिये । आज मानव जाति शारीरिक और मानसिक दुखों से बुरी तरह घिरी हुइ है । यह आप सभी का कर्तव्य है कि आप उनके बीच जायें और उनको उस पवित्र दिव्य ज्ञान का सन्देश देकर उनके दुखों को दूर करके उन्हें शान्ति का रास्ता दिखाएं । जवान हो या बूढा आदमी या औरत सभी को यह शिक्षा देनी है ।" सभी को इस महान् दिव्य योग विज्ञान की महान् परम्परा के तरीकों को सिखाना है, जो उनके जीवन में सुख व शान्ति भर दे । आप सबका फर्ज है कि आप उनको स्वाभाविक जीवन जीने में उनकी सहायता करें , सब मनुष्य वास्तविक ज्ञान प्राप्त करें जिससे वे तनावों से रोगों से रहित जीवन जी सके ।"
यह सन्देश परमहंस योगिराज स्वामी महेश्वरानन्द पुरी जी पर उनकी गहरी साधना के क्षणों में भगवान श्री दीपनारायण महाप्रभु जी के द्वारा प्रकाशित हुआ था । इसके बाद से ही स्वामी जी पूरी तरह आध्यात्मिकता के मार्ग पर चल पडे । उन्होंने कभी पीछे मुडकर नहीं देखा । आज वह संसार के महानतम आध्यात्मिक गुरुओं में गिने जाते हैं ।
हिन्दू धर्मसम्राट परमहंस श्री स्वामी माधवानन्द जी के शिष्य एवं उनके पीठासीन(उत्तराधिकारी) होने से विश्वगुरु परमहंस स्वामी महेश्वरानन्द जी भारत की प्राचीनतम आध्यात्मिक विरासत ॐ श्री अलखपुरी जी सिद्धपीठ परम्परा की ही अगली सीढी में हैं, जो पवित्र अवतारों और भगवान का प्रत्यक्ष करने वालों में गिने जाते हैं । यह परम्परा परम महासिद्ध अवतार श्री अलखपुरीजी से परमयोगीश्वर स्वयंभू श्री देवपुरी जी, भगवान श्री दीपनारायण महाप्रभुजी और हिन्दू धर्मसम्राट परमहंस श्री स्वामी माधवानन्द जी तक चली आई है ।
Biography & Activities
Early years
विश्वगुरु श्री महेश्वरानन्द जी ने राजस्थान के पाली जिले के रूपवास नाम के गांव में १५ अगस्त १९४५ में जन्म लेकर पूरे राजस्थान की ही नहीं बल्कि पूरे भारत देश की धरती का मान बढाया है । उनके पिता पंडित कृष्णराम गर्ग और माता फूलदेवी गर्ग दोनों ही सच्चे धार्मिक और भक्त थे । स्वामी जी का बचपन का नाम मांगीलाल था । छोटेपन से ही वह अपना खाली समय ध्यान पूजा में बिताते थे । किशोर अवस्था में ही उनके गुरु हिन्दू धर्मसम्राट परमहंस स्वामी माधवानन्द जी ने उन्हें स्वामी की उपाधि दे दी थी । कई सालों तक स्वामी जी उन्हीं की छत्रछाया में आश्रम में रहकर सारे धार्मिक अनुष्ठान व आध्यात्मिक अभ्यास नियमपूर्वक करते रहे थे ।
On the Path
Jagadguru
१० अप्रेल १९९८ में विश्वधर्म संसद ने परमहंस स्वामी महेश्वरानन्द पुरी जी को "सार्वभौम सनातन धर्म जगद्गुरु" की उपाधि से सम्मानित किया ।
Mahamandaleshwar
१३ अप्रेल १९९८ में हरिद्वार में आयोजित महाकुम्भ में उन्हें महा निर्वाणी अखाडे का "महामण्डलेश्वर" बनाया गया ।
Vishwaguru
२००१ में प्रयाग में लगे महाकुम्भ मेले में विद्वत् समाज ने पुण्यस्वरूप जगद्गुरु शंकराचार्य श्री स्वामी नरेन्द्रानन्द जी की उपस्थित में स्वामी जी को साधु समाज की सबसे बडी आध्यात्मिक उपाधि विश्वगुरु का सम्मान दिया ।
Coming to Europe
१९७२ में वह यूरोप गये । अब तक स्वामी जी को योग एवं अध्यात्म का बहुत अच्छा अनुभव हो गया था । उन्होंने यूरोप के लोगों की जरूरतों को देखा व समझा । गहराई से विचार करने पर उन्हें भारतीय प्राचीन योग और आधुनिक विज्ञान को साथ साथ लेकर चलने की प्रेरणा मिली । इस तरह उन्होंने एक पूर्ण और अन्तर्राष्ट्रिय रूप से अपनाया जाने योग्य अपना ही तरीका 'दैनिक जीवन में योग' नाम से बनाया और यूरोप के लोगों को सिखाया । आज यूरोप से यह प्रणाली पूरे संसार में फैल गई है। इससे मानवता के कल्याण के साथ साथ जगत के सभी जीवों का भी भला होगा । संसार भर के हजारों लाखों लोगों ने इसे अपना लिया है ।
50 years
पिछले ४५ सालों में स्वामी जी पूरे विश्व में घूमें हैं । सत्य सनातन धर्म और योग के भगवान श्री दीपनारायण महाप्रभु जी के सन्देश को स्वामी जी ने बिना रूके बिना थके घर घर और देश देश तक पहु्ंचाया है । वह जहां भी जाते हैं लोगों को आत्मज्ञान और सबसे प्रेम करने का सन्देश देते हैं , जीवन का सत्य और सही मार्ग समझने में उनकी मदद करते हैं राष्ट्रों की आपसी सांस्कृतिक, धार्मिक समझ बढे वे एक दूसरे का आदर करें, और उनमें सहनशक्ति बढे, सभी पर्यावरण प्रकृति की सुरक्षा का ध्यान रखें और शाकाहार को अपनाएं यही स्वामी जी का जन जन के लिये सन्देश है ।
Interreligious Dialogues & Wolrd Peace Prayers
विश्वशान्ति की प्रगति और उसके विषय में सभी को जागरूक करने को बहुत जरूरी समझते हुए परमहंस स्वामी महेश्वरानन्द पुरी जी ने पूरे संसार के देशों के धार्मिक जननेताओं और धार्मिक गुरुओं के बीच में चर्चाएं करवाई हैं और स्थान-स्थान पर प्रार्थनाएं करवाई हैं । इस विषय में आयोजित विश्वसम्मेलनों और अन्तर्राष्ट्रीय सभाओं में भी स्वामी जी लगातार सक्रियता से भाग लेते रहते हैं ।
In India
अपने देश भारत में भी स्वामी जी मानवता की सेवा करने में आगे रहे हैं । इसके लिये उन्होंने स्वास्थ्य एवं शिक्षा के क्षेत्र में ज्ञानपुत्र योजना शुरू की है । इससे गांव के गरीब और असहाय लोगों को अपने बच्चों की शिक्षा जारी रखने में बहुत आसानी हो गई है । हाल ही में कुछ नई योजनाएं शुरू की हैं, जिनके तहत गांवों में अस्पताल और लडकियों के लिये स्कूल बनाये जा रहे हैं । इसके साथ ही एक आयुर्वेदिक, नेचरोपैथिक (प्राकृतिक चिकित्सा) और योग द्वारा चिकित्सा की प्रगति के लिये एक विश्वविद्यालय का ढांचा भी खडा कर रहे हैं ।